जब दिल जुड़ते हैं पर वक्त साथ नहीं होता, तब मोहब्बत ऑफिस की मेजों पर नहीं, कॉफी के कप में रह जाती है — अधूरी, मगर गहरी।
श्रेया को ऑफिस आए अभी चार महीने ही हुए थे, लेकिन उसकी मौजूदगी ने जैसे पूरे फ्लोर की रूटीन बदल दी थी। सिंपल सी दिखने वाली, लेकिन उसकी आँखों में कुछ था — अधूरा सा, पर गहराई से भरा। मैं — आयुष, मार्केटिंग टीम में सीनियर था, और वो मेरी रिपोर्टिंग में आई थी। शुरू में सिर्फ काम की बातें होती थीं। लेकिन फिर...
श्रेया हर दिन कॉफी मशीन के पास मुझे मिलती। कभी वो मुझसे पहले आ जाती, कभी मैं उसका इंतज़ार करता। वो अपने बालों को उंगलियों से बार-बार पीछे करती, और जब भी कुछ पूछती, हल्की सी मुस्कान उसके चेहरे पर रहती।
मैं शादीशुदा था... लेकिन शादी बस नाम की थी। हम अलग-अलग कमरे में रहते थे, बात भी नहीं करते थे। श्रेया ने कभी नहीं पूछा, लेकिन उसकी आँखों में सवाल थे — और मेरे पास जवाब नहीं।
एक दिन बारिश में ऑफिस से निकलते वक़्त मैंने उसे छाते के नीचे बुला लिया। वो भीग रही थी, और मैं चाहता था कि वो कम से कम सर्दी से बच जाए। उस दिन पहली बार उसने मेरी बाँह को हल्के से छुआ — और फिर कुछ नहीं कहा।
कुछ हफ्ते बाद, उसने मुझे मैसेज किया — “क्या प्यार वही होता है जो सबको दिखे, या वो जो सिर्फ महसूस हो?”
मैंने जवाब नहीं दिया। डरता था... अपने आपसे, अपनी हिम्मत से, समाज से।
एक दिन ऑफिस में लंच के बाद हम रूफटॉप पर बैठे थे। हल्की हवा चल रही थी, और वो मेरे कंधे से लगकर बैठ गई। पहली बार किसी ने मुझे यूँ छुआ — बिना किसी अधिकार के, लेकिन पूरे एहसास के साथ।
वो रात आई, जब उसने कहा — “मैं जा रही हूँ। ट्रांसफर ले लिया है। खुद को बचाने के लिए।” मैंने सिर्फ उसकी आँखों को देखा। चुपचाप।
अगली सुबह जब ऑफिस पहुँचा, उसकी सीट खाली थी। उसकी कॉफी मग वहीं रखा था — अधूरा, जैसे हमारी मोहब्बत।
आज दो साल हो गए हैं। मैं उसी कॉफी मशीन के पास रोज़ खड़ा होता हूँ। कभी उसकी खुशबू आती है, कभी उसकी बातों की गूंज। प्यार कभी-कभी मिलकर भी अधूरा रह जाता है, और कुछ रिश्ते हमेशा अधूरे रहकर ही मुकम्मल होते हैं।
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