अपनी रक्षा सबका हक
दीपक द्विवेदी
वस्तुत: विकासशील देशों को अपने किसानों को बढ़ते आयातों के संकट से बचाने के लिए उचित समय पर अनुकूल कदम उठाने चाहिए। सभी देशों को अपनी अधिसंख्य आबादी की आजीविका की रक्षा करने का पूर्ण अधिकार प्राप्त है।
हाल-फिलहाल में अलग-अलग कारणों से दुनिया का परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। कभी युद्ध विश्व की तस्वीर बदल रहे हैं तो कहीं आतंकवाद के कारण विभिन्न देशों को असामान्य परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। इन सब घटनाक्रमों के बीच अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक नया ‘टैरिफ वार’ अलग से छेड़ दिया है जिसकी वजह से भारत समेत दुनिया भर के बाजार धड़ाम हो गए थे। यह तो अच्छा हुआ कि ट्रंप ने चीन को छोड़ कर अन्य देशों के खिलाफ इस ‘टैरिफ वार’ को 90 दिनों के लिए स्थगित कर दिया जिसकी वजह से बाजारों में कुछ बहार लौट आई। दरअसल राष्ट्रपति ट्रंप कभी भी, कुछ भी कर देने वाला मिजाज रखते हैं क्योंकि अब ट्रंप ने एक और नया अल्टीमेटम दे डाला है कि जो भी अमेरिका में 30 दिन से ज्यादा रहेगा उसे रजिस्ट्रेशन कराना होगा; अन्यथा ऐसे व्यक्ति को अवैध प्रवासी मान कर उस पर कार्रवाई होगी। ट्रंप का मानना है कि विश्व के देश अमेरिका पर तो कर लगा रहे हैं पर अब और ऐसा नहीं होगा। ट्रंप का कहना है कि अब समय आ गया है कि हम अपने उत्पादों का निर्माण अमेरिका में ही करें। हम किसी भी देश, खासकर चीन जैसे दुश्मन व्यापारिक राष्ट्रों के आगे बंधक नहीं बन सकते। ये देश दशकों से हमारा व्यापारिक शोषण करते आ रहे हैं लेकिन अब वो दिन लद चुके हैं।
इसके विपरीत दुनिया भर का मत है कि ट्रंप ने मनमाने तरीके से आयात शुल्कों की घोषणा करते हुए हाल में संयुक्त राज्य अमेरिका को विकासशील देशों सहित विभिन्न देशों द्वारा ठगे जाने की जो शिकायत की है, उसे उचित नहीं माना जा सकता। इसका आधार यह है कि हाल के दशकों के विदेशी व्यापार की सबसे बड़ी और कड़वी सच्चाई यही रही है कि धनी देशों और वहां की बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने व्यापार नियमों और विश्व व्यापार संगठन का भरपूर उपयोग अपने संकीर्ण स्वार्थों को बढ़ाने के लिए किया है तथा विकासशील देशों के जरूरतमंद लोगों; विशेषकर किसानों को होने वाली क्षति की अनदेखी की है। यहां एक तथ्य और बड़ा अजीब सा यह है कि जब शोषण करने वाले ही शिकायत करने लगें तो फिर ऐसे ही हालात विश्व में उत्पन्न होंगे जैसे कि ट्रंप के ‘टैरिफ वार’ से देखने को मिल रहे हैं। दरअसल धनी देशों की सब्सिडी पर आधारित खेती से विकासशील और गरीब देशों के किसानों को व्यापक हानि का सामना करना पड़ता है। इस ओर ऑक्सफेम इंटरनेशनल द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट ने कई चौंकाने वाले तथ्यों सहित ध्यान दिलाया है। इस रिपोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि लागत से भी कम मूल्यों पर विकासशील देशों को कृषि उत्पाद निर्यात कर विकसित देश यहां के स्थानीय उत्पादन, खाद्य सुरक्षा और गांववासियों की रोजी-रोटी की बहुत हानि कर रहे हैं। भूमंडलीकरण और व्यापार की विसंगतियों के गरीबों पर असर का विश्लेषण करने वाली इस अध्ययन रिपोर्ट में बताया गया है कि यूरोपियन यूनियन और संयुक्त राज्य अमेरिका उत्पादन लागत से एक तिहाई से भी कम कीमत पर निर्यात करते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार इस तरह के निर्यातों से विकासशील देशों में छोटे किसानों का भविष्य तबाह हो रहा है। इस तरह एक तो विश्व व्यापार का हिसाब-किताब विकासशील और निर्धन देशों के विरुद्ध रखा गया तथा दूसरी ओर विदेशी व्यापार के नियमों में बहुत से अन्य मुद्दे जोड़ कर विकासशील और निर्धन देशों की संप्रभुता को भी चोट पहुंचाई गई। अब अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की हालिया घोषणाओं से मनमानी नीतियों को और बढ़ावा ही मिला है। इसका दोषारोपण भी विकासशील, निर्धन और अन्य देशों पर कर दिया गया है। अब जरूरी यह है कि इस मनमानेपन, शोषण और कठिनाइयों को बढ़ाने वाली एकतरफा कार्यवाही के खिलाफ विकासशील देशों को व्यापक विरोध करना चाहिए और इसके लिए विकासशील देशों को अपनी एकता भी बढ़ानी चाहिए क्योंकि भले ही राष्ट्रपति ट्रंप ने अभी अपना ‘टैरिफ वार’ स्थगित कर दिया हो पर वह इसे कभी भी पुन: प्रारंभ कर सकते हैं। वस्तुत: विकासशील देशों को अपने किसानों को बढ़ते आयातों के संकट से बचाने के लिए उचित समय पर अनुकूल कदम उठाने चाहिए। सभी देशों को अपनी अधिसंख्य आबादी की आजीविका की रक्षा करने का पूर्ण अधिकार प्राप्त है।
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