अब कम समय में तैयार होंगी दलहनी फसलें
ब्लिट्ज ब्यूरो
कानपुर। हर भारतीय के खाने में प्राय: दाल भोजन के एक भाग के रूप में अवश्य होती है। हालांकि पिछले कुछ समय में बड़े पैमाने पर देश में दालें आयात कर घरेलू जरूरतों को प्राय: पूरा किया जा रहा है। यद्यपि इस काल में दालों का उत्पादन भी तेजी से बढ़ा है पर दाल उत्पादन के मोर्चे पर देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान (आईआईपीआर) लगातार कई प्रयोग कर रहा है।
आईआईपीआर के निदेशक डॉ. जीपी दीक्षित के अनुसार कम अवधि की प्रजातियां और अरहर की फसल हाइब्रिड वैरायटी से सिर्फ 140 दिनों में तैयार होगी।
डॉ. दीक्षित ने बताया कि भारत में अरहर, मसूर और उड़द का कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, म्यांमार और अफ्रीकी देशों से आयात होता है। उत्तर भारत में कभी 60 लाख हेक्टेअर जमीन पर दलहनी फसलें लगती थीं पर हरित क्रांति, मौसमी परिस्थितियों और अन्य कारकों से उत्तर भारत में दलहन के प्रति किसानों की रुचि खत्म होती चली गई। दूसरी तरफ मध्य और दक्षिणवर्ती राज्यों में दलहन की खेती का रकबा बहुत तेजी से बढ़ा है।
दो फसलों के अंतराल में तीसरी फसल
आईआईपीआर के डायरेक्टर के अनुसार मार्च-अप्रैल में जायद की फसलों के साथ उड़द की फसल भी पैदा हो रही है। पहले उड़द की फसल तैयार होने में 75-80 दिन लगते थे लेकिन आनुवांशिक बदलावों के चलते अब 60-65 दिनों में तैयार हो रही है। वहीं मूंग की विराट प्रजाति अब सिर्फ 55 दिनों में तैयार जाएगी।
इसे गर्मियों में गेहूं कटाई के बाद बोया जाएगा। मध्य प्रदेश में गर्मियों में मूंग का क्षेत्रफल बढ़ा है। दलहनी फसलों में पोषक तत्वों की अधिकता के कारण कीड़े भी बहुत लगते हैं। इससे निपटने के लिए कई स्तरों पर काम हो रहा है। मोजैक वैरायटी को कीड़ों से बचाने के लिए इसमें रेजिस्टेंस (प्रतिरोध) डाला गया है।
डॉ. दीक्षित ने बताया कि पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दलहनी खेती को प्रोत्साहित करने के लिए कई उपाय किए गए हैं। यहां कम अवधि की अरहर के बाद गेहूं की बोआई की जा सकेगी। इससे किसानों की आय के साथ दालों का उत्पादन भी बढ़ेगा।
डॉ. दीक्षित ने बताया कि भारत सरकार ने जीनोम एडिटिंग के जरिए फसलों में सुधार कर के दलहन उत्पादन बढ़ाने पर फोकस किया जा रहा है। इसके लिए आईआईपीआर को चना, अरहर, मसूर, उरद, खेसारी में सुधार का लक्ष्य दिया गया है। अभी तक देश में चने की उपज 2-2.5 टन/हेक्टेयर से ऊपर नहीं जा पा रही है। जीनोम एडिटिंग (आनुवांशिक बदलावों) के जरिए फलियों को बढ़ाने के प्रयास भी किए जा रहे हैं।
– देश होगा आत्मनिर्भर, विदेशों से घटेगा आयात
– दालों के उत्पादन में तेजी से वृद्धि
– किसानों की आय में भी होगी वृद्धि
– जीनोम एडिटिंग के जरिए बढ़ेगा उत्पादन
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