पाकिस्तान अफगानियों पर ‘बेरहम’ क्यों? ईद बीतते ही निकालना किया शुरू, तालिबान पर प्रेशर वाली रणनीति समझिए
पाकिस्तान ने अपने देश में अवैध रूप से रह रहे अफगानियों को बाहर निकालना शुरू की कवायद तेज कर दी है. बाहर निकालने की चल रही प्रक्रिया के तहत रविवार, 6 अप्रैल को पाकिस्तान के पंजाब और सिंध से 1,636 अफगान नागरिकों को निर्वासित किया गया. पाकिस्तानी अखबार डॉन की रिपोर्ट के अनुसार सबसे बड़ा ट्रांसफर पाकिस्तान के पंजाब में देखने को मिला है. यहां 5,111 अन्य अफगान नागरिकों को अफगानिस्तान वापस भेजने के लिए पूरे प्रांत में होल्डिंग सेंटर्स में ले जाया गया, जिनमें 2,301 बच्चे और 1,120 महिलाएं शामिल थीं. यहीं से उन्हें अफगानिस्तान भेजा जाएगा. इनमें से अधिकांश के पास अफगान नागरिक कार्ड (एसीसी) है. यह कार्ड पाकिस्तान की पुलिस और अन्य एजेंसियों से वेरिफाई करने के बाद जारी किए हैं.
इस्लामाबाद ने मार्च की शुरुआत में घोषणा की कि 800,000 अफगान नागरिक कार्ड (एसीसी) रद्द कर दिए जाएंगे. यह अफगानियों को पाकिस्तान से निकालने का दूसरा चरण है, जिसने पहले ही 800,000 बिना दस्तावेज वाले अफगानों को सीमा पार करने के लिए मजबूर कर दिया है.
रिपोर्ट के अनुसार एक अधिकारी ने बताया है कि सुरक्षा एजेंसियों ने पूरे प्रांत में 150 से अधिक 'अफगान कॉलोनियों' में अवैध रूप से रहने वाले एक लाख अफगानों की पहचान की है. ध्यान रहे कि पाकिस्तान ने भी जिनेवा कन्वेंशन पर साइन किया है. ऐसे में पाकिस्तान बाहर से आने वाले शरणार्थियों को कानूनी सुरक्षा देने के लिए बाध्य है.
एडिशनल आईजी पुलिस, पंजाब वकास नजीर ने डॉन को बताया है कि पुलिस ने इन अवैध अफगानियों को 150 से अधिक अफगान कॉलोनियों में पाया है, इनमें से 7 कॉलोनी लाहौर में हैं. फिर उनका पता लगाया गया और उन्हें पाकिस्तान की सरकार के फैसले के बारे में बताया गया. पाकिस्तान अफगानी शर्णार्थियों को वापस क्यों भेज रहा है?
दरअसल 2023 में पाकिस्तान ने पिछले 40 सालों में अपने देश में घुसने वाले लगभग 40 लाख अफगानों को वापस भेजने के लिए एक बड़ी पहल शुरू की थी. इसके बाद पाकिस्तान सरकार ने देश में अवैध रूप से रह रहे विदेशी नागरिकों को बाहर निकालने के लिए 31 मार्च की समय सीमा तय की है. इसके लिए जनवरी और फरवरी में तलाशी अभियान चलाया गया.
पिछले तीन सालों में पड़ोसी देश अफगानिस्तान के साथ पाकिस्तान के रिश्ते तल्ख हुए हैं. इस्लामाबाद अफगानिस्तान के तालिबान सरकार पर यह आरोप लगाता है कि वह तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) को कंट्रोल नहीं कर पा रही है. टीटीपी 2007 में गठित एक आतंकवादी समूह है और इसने पाकिस्तान के सुरक्षा बलों पर कई हमले किए हैं. डीडब्लू की रिपोर्ट के अनुसार एक्टिविस्ट गिलानी ने कहा कि पाकिस्तान में लाखों अफगान शरणार्थियों को "जब भी दोनों देशों के बीच तनाव होता है तो दबाव बनाने के लिए बंधकों के रूप में इस्तेमाल किया जाता है."
पाकिस्तान ने अफगानिस्तान से आए सैकड़ों हजारों शरणार्थियों को जगह दी है और यह स्थिति दशकों की क्षेत्रीय अस्थिरता के कारण उत्पन्न हुई है. अगस्त 2021 में तालिबान के कब्जे के बाद पाकिस्तान पहुंचे अफगान देश में रहने के लिए वीजा रिन्यू किये जाने की मांग कर रहे हैं. लेकिन यह प्रक्रिया महंगी, अनिश्चित है और अक्सर इसमें बहुत वक्त लगता है. पाकिस्तान से लौट रहे अफगानियों को क्या खतरा?
मानवाधिकारों की रक्षा की बात करने वाले समूहों ने चेतावनी दी है कि तालिबान के कंट्रोल वाले अफगानिस्तान में लौटने वाले इन लोगों को हिंसा और आर्थिक जोखिम सहित कई गंभीर खतरों का सामना करना पड़ रहा है. महिलाएं, पत्रकार, मानवाधिकार एक्टिविस्ट और पूर्व सरकारी अधिकारी जैसे लोगों पर ज्यादा खतरा है.
45 साल की राउफी 1990 के दशक में उस समय पाकिस्तान भागने को मजबूर हुई थीं जब उनका परिवार अफगानिस्तान में गृहयुद्ध के बीच भाग गया था. तब वह 13 साल की थीं, उन्होंने न्यूज एजेंसी एएफपी को बताया, "अगर मुझे निर्वासित किया जाता है, तो यह मुझे नष्ट कर देगा. या तो मेरा दिल रुक जाएगा, या मैं अपनी जान ले लूंगी.. "पाकिस्तान ने हमें हमारी मुस्कुराहट दी और अब वो मुस्कुराहट छीनी जा रही है."
पाकिस्तान की सरकार ने शुरू में अफगान प्रवासियों के लिए खुद से देश छोड़ने की डेडलाइन 31 मार्च निर्धारित की थी. अगर वो ऐसा नहीं करते तो उन्हें जबरदस्ती देश से निकाला जाएगा. हालांकि, अधिकारियों ने कहा कि रमजान के आखिर में ईद-उल-फितर की छुट्टियों के कारण डेडलाइन 10 अप्रैल तक के लिए स्थगित कर दी गई थी.
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