दो साल बाद, जब श्रेया दोबारा उसी ऑफिस में लौटी, तो कॉफी के कप ने फिर से कुछ कहा — इस बार अधूरा नहीं था, लेकिन वैसा भी नहीं जैसा पहले था।

दो साल बाद जब HR से कॉल आया कि नई ब्रांड हेड जॉइन कर रही हैं, किसी ने नहीं सोचा था कि वो 'नई' कोई जानी-पहचानी होगी। लेकिन जब लिफ्ट से उतरते हुए श्रेया को देखा, मेरे कदम वहीं थम गए। वही चाल, वही आँखें, पर अब उनमें एक सख्ती थी।

उसने मुझे सिर्फ एक हल्की सी मुस्कान दी, जैसे बीते कल को acknowledge कर लिया हो — पर वापस जीने की कोई ख्वाहिश नहीं। मैं अब टीम लीड बन चुका था, और वो मेरी रिपोर्टिंग में नहीं थी, लेकिन करीब थी... हर दिन।

कॉफी मशीन के पास अब हम मिलते नहीं थे, बल्कि मीटिंग रूम के कोनों में कभी-कभी नज़रें टकरा जाती थीं। वो अब अपने बालों को क्लिप में बांधती थी, और कॉफी मग की जगह उसके हाथ में लैपटॉप रहता था। लेकिन कभी-कभी जब थककर वो डेस्क से सिर टिकाती, तो मुझे वही पुरानी श्रेया दिखती — जो बारिश में भीगती थी, जो rooftop पर मेरे कंधे से लगती थी।

एक दिन, ऑफिस इवेंट के बाद जब सब जा चुके थे, मैं पार्किंग में अपनी कार ढूँढ रहा था, तभी उसकी आवाज़ आई — “आयुष, चलो एक कॉफी हो जाए?”

वो पहली बार थी जब उसने खुद पहल की थी। पास के एक पुराने कैफे में, हम उस टेबल पर बैठे जहाँ दो साल पहले हम अक्सर आते थे। उसने कहा — “शायद अब हम दोनों बदल चुके हैं, लेकिन वो एहसास... अभी भी कहीं-कहीं सांस लेता है।”

मैंने हल्के से उसकी उंगलियों को छुआ, न अधिकार से, न झिझक से... बस एहसास से। उसने हाथ नहीं हटाया।

उस रात कोई वादा नहीं हुआ, कोई confession नहीं — बस एक लंबी चुप्पी थी, जो दोनों को सुनाई दे रही थी।

आज भी हम उसी ऑफिस में काम करते हैं। एक दूसरे के बहुत पास, फिर भी थोड़े दूर। लेकिन अब जब मैं कॉफी मशीन पर जाता हूँ, दो कप बनाता हूँ। एक उसका, एक मेरा। वो कभी-कभी आती है, कभी नहीं।

पर अब मैं जानता हूँ — कुछ मोहब्बतें लौटती हैं, अधूरी नहीं होतीं, बस परिपक्व हो जाती हैं।

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