एक अरेंज मैरिज, जिसमें ना था रोमांच, ना जुनून... पर फिर भी दिल जुड़ गया, आत्मा से।
मेरी शादी अर्जुन से एक अरेंज मैरिज थी। मेरी मर्जी नहीं थी, पर विरोध करने की हिम्मत भी नहीं थी। अर्जुन… बहुत सीधा-सादा, शांत सा लड़का। न ज़्यादा बोलता, न गुस्सा करता। बस हर सुबह मेरी पसंद की चाय बना देता और ऑफिस चला जाता।
शादी की पहली रात, मैं कमरे में बैठी थी, घबराई हुई। तभी अर्जुन अंदर आया, एक छोटी सी मुस्कान के साथ। उसके हाथ में दूध का गिलास नहीं, बल्कि एक किताब थी — Love in the Time of Cholera।
"मैं जानता हूँ, तुम्हारे मन में शायद बहुत कुछ चल रहा है," उसने कहा, "तो आज बस बैठकर बातें करते हैं।"
रातभर हम बातें करते रहे — कॉलेज की, बचपन की, और टूटे हुए सपनों की। उसने कभी कोशिश भी नहीं की मुझे छूने की… लेकिन उसकी बातें, उसकी आंखें, मेरे दिल को छूती रहीं।
दिन बीतते गए। मैं उसे परखती रही। कभी रात में जानबूझकर बाल खुले छोड़ सो जाती, कभी उसके सामने हल्के से साड़ी का पल्लू खिसका देती। लेकिन अर्जुन… बस मुस्कुराता।
एक दिन, जब मैं बीमार पड़ गई, वो मेरे माथे पर हाथ रखकर पूरी रात बैठा रहा। उसकी उंगलियाँ मेरे बालों में फिसलीं — न धीमे, न तेज़… बस ठीक वैसी, जैसी मेरे मन को चाहिए थी।
मेरे भीतर कुछ बदलने लगा था।
एक शाम, मैंने उससे कहा, "क्या हम आज पहली बार… पति-पत्नी की तरह..."
वो मुस्कराया, "आज? नहीं... आज नहीं। आज मैं तुम्हें सिर्फ गले लगाना चाहता हूँ। बाकी सब... जब तुम्हारा दिल कहे।"
उसने मुझे बाँहों में लिया, और मैं उसके सीने से लगकर रो पड़ी — उन आंसुओं के लिए, जो कभी किसी ने समझे ही नहीं थे।
उसी रात, उसके होंठों ने मेरी पलकों को चूमा, और मेरी साँसों ने उसकी साँसों को थामा। प्यार पहली बार महसूस हुआ — सिर्फ शरीर से नहीं, आत्मा से।
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